Monday 14 September 2015

प्रैस विज्ञप्ति : 12-9-2015



नुकसान हमारा तो, लाभ भी हमें मिले

श्रीनगर बांध विरोध की लड़ाई जारी रहेगी

 

म्ंाच पर विष्णुगाड-पीपलकोटी बांध से प्रभावित नरेन्द्र पोखरियाल, श्रीनगर पूर्वनगरपालिका अघ्यक्ष के0 एन0 मैठाणी जी टिहरी बांध विरोधी संघर्ष के कार्यकर्ता जगदम्बा प्रसाद रतूड़ी, वक्तव्य देती नगरपालिका सदस्य विजयलक्ष्मी रतूड़ी
 



मुख्य वक्ता 
डा0 भरत झुनझुनवाला
 


श्रीनगर बांध से प्रभावित  
हरिप्रसाद उप्रेती






श्रीनगर बांध से प्रभावित  
मथुरा प्रसाद सिलोड़ी







‘‘श्रीनगर बांध की लड़ाई हम हारे नहीं बल्कि आज श्रीनगर बांध से होने वाले दुष्परिणाम सामने आये हैं जिनसे यह सिद्ध हुआ है कि हमने जो आशंका व्यक्त की थी वह सही सिद्ध हुई हैं‘‘ माटू जनसंगठन व श्रीनगर बांध आपदा संघर्ष समिति द्वारा ‘‘अलकनंदागंगा पर बांधः जनहक-नदीहक‘‘ विषय पर आयोजित परिचर्चा में सभी वक्ताओं ने एक मत से यह विचार व्यक्त किये।

परिचर्चा के मुख्य वक्ता डा0 भरत झुनझुनवाला ने बताया कि कैसे जीवीके बांध कंपनी ने बंाध से निकली मक की व्यवस्था सही तरह से नही की थी जिसके कारण श्रीनगर शहर में जून 2013 में बर्बादी आई, उच्चतम् न्यायालय के आदेश पर बनी रवि चोपड़ा समिति ने भी 23 से 46 प्रतिशत मलबे को श्रीनगर बांध निर्माण से निकली मक बताया है। चूंकि बांध कंपनी ने मक का निस्तारण पर्यावरणीय मानको के अनुसार नही किया था। भले ही हमको उच्चतम् न्यायालय ने श्रीनगर बांध वाले केस में राहत नही दी है किन्तु हम बांध का विरोध जारी रखेंगे। बांध के बुरे असर सामने आ रहे है। राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण में दायर 2013 में हुये जीवीके कंपनी के बांध से हुये नुकसान मुआवजे़ के केस के बारे उन्होने बताया की अब अदालत में कार्यवाही अंतिम चरण में है। उत्तराखंड सरकार ने बाढ़ स्तर की रेखा अभी तक नही लगाई है। जिस कारण से जीवीके कंपनी का यह कहना की लोगो ने नदी के बाढ़ स्तर के नीचे मकान बनाये है, गलत है।

जून 2013 की आपदा की याद करते हुये भावुक स्वरों में हरिप्रसाद उप्रेती, चंद्रमोहन भट्ट व मथुरा प्रसाद सिलोड़ी ने बताया की ना केवल सरकारी/अर्द्धसरकारी/व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक सम्पत्तियंा बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हुई। बल्कि श्रीनगर शहर के शक्तिबिहार, लोअर भक्तियाना, चौहान मौहल्ला, गैस गोदाम, खाद्यान्न गोदाम, एस0एस0बी0, आई0टी0आई0, रेशम फार्म, रोडवेज बस अड्डा, नर्सरी रोड, अलकेश्वर मंदिर, ग्राम सभा उफल्डा के फतेहपुर रेती, श्रीयंत्र टापू रिसोर्ट आदि स्थान भी बर्बादी के शिकार हुये। हमारे बच्चे आज भी बारिश से डर जाते है। हमारी आर्थिक कमजोर हुई है मानसिक रुप से हम व्यथित है। सरकार, प्रशासन तक ने हमारा साथ नही दिया। अधिकरियांे ने राहत के नाम पर लूट मचाई। तब हमने राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण में याचिका दायर की।

माटू जनसंगठन के विमलभाई ने कहा की अभी भी इस बांध की नहर से जो रिसाव हो रहा है उससे कीर्तिनगर ब्लॅाक के चौरास क्षेत्र के नौर, किल्कलेश्वर, मगसू, सुरासू, मणिखेरिया आदि गाँव खतरे में है। खेतों में पानी आ जाता है व कई आवासीय मकानों को भी खतरा है। बांध बनने के बाद शहर में पानी की सप्लाई में असर पड़ा है। पुनर्वास के बहुत मामले अभी भी अटके हुए है। पर्यावरण पर जो असर पड़ रहा है उसका तो कही ज़िक्र ही नहीं है। यहाँ नदी का तल भी डेढ़ मीटर ऊंचा उठा है जिससे शहर को हमेशा बाढ़ का खतरा बना हुआ है। इन परिस्थितियों को झेलने के साथ लोग पॉवर कट और पेयजल की समस्या को भी झेल रहे है।

टिहरी बांध विरोधी संघर्ष के कार्यकर्ता जगदम्बा प्रसाद रतूड़ी ने कहा की आज परिस्थितियंा भिन्न है बड़े बांधो के विनाश सामने आ गये है। लोग लामबंद हो रहे है। और हम जीत सकते है।

विष्णुगाड-पीपलकोटी बांध से प्रभावित नरेन्द्र पोखरियाल ने कहा हमें गंगा अविरल चाहिये। प्रधानमंत्री मोदी जी काशी को स्मार्ट सिटी बनाने की बात कर रहे है किन्तु देवभूमि की छोटी कोशी को क्यों भूल जाते है जो विष्णुगाड-पीपलकोटी बांध से बर्बाद हो रही है। गंगा पर बांधो से देवभूमि का मान ही समाप्त हो रहा है। हम 15 साल से बांध के खिलाफ लड़ रहे है। झूठे मुकद्दमें झेल रहे है। किन्तु हारे नही है। हमारे गांव-गंगा बचे यही हमारी लड़ाई है।

देवप्रयाग से आये सुर्दशन साह ने कोटली-भेल परियोजनाओं की बात रखते हुये कहा की जनदबाव को अदालत भी पहचानती है। आज कोटली-भेल चरण-ब परियोजना इसी कारण से बंद हुई है।

पूर्वनगरपालिका अघ्यक्ष के0 एन0 मैठाणी जी ने सभा की अघ्यक्षता करते हुये की उन्होने अपने कार्यकाल के दौरान बांध से पानी की समस्या होने की चेतावनी दी थी।

सभा का अंत करते हुये नगरपालिका सदस्य विजयलक्ष्मी रतूड़ी ने कहा की जनता हको की लड़ाई में एक होकर साथ आयेगी तभी जीत मिलेगी। हम मात्र मुआवजे़ की लड़ाई नही लड़ रहे है बल्किी अपने हको के लिये सामने आये है। श्रीनगर बांध की तबाही को हम आने वाली पीढ़ियों को नही देकर जायेंगे वरन् एक सही विकासशील उत्तराखंड देकर जाने के लिये प्रयासरत होंगे। जिसमें बड़े बांधों की तबाही नही होगी।

श्रीनगर जलविद्युत परियोजना 2014 से कार्यरत है। बिजली का उत्पादन हो रहा है। किन्तु लोगो को समस्यायें ही मिल रही है नाकि जो हक के रुप मंे मिलना चाहिये था। इसलिये इन तथ्यों को देखते हुये परिचर्चा में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया गया की माननीय केद्रिंय ऊर्जा मंत्री श्री पीयूष गोयल जी व माननीय मुख्यमंत्री, उत्तराखण्ड श्रीमान हरीश रावत जी को श्रीनगर से एक मांग पत्र दिया जायेगा जिसके लिये पूरे बांध प्रभावित क्षेत्र मे हस्ताक्षर अभियान चलाया जायेगा। जिसमें निम्न मांगे रखी जायंेगीः-

1) ऊर्जा मंत्रालय की ‘‘पनबिजली परियोजनाओं के विकास की दिशा निर्देश‘‘ 23 मई 2006 के अनुरूप श्रीनगर बांध से राज्य को प्राप्त होने वाली 12 प्रतिशत बिजली में से मुफ्त बिजली दी जाये।
2) ऊर्जा मंत्रालय की जलविद्युत नीति 2008 के अनुसार 1 प्रतिशत मुफ्त बिजली से बने ‘‘स्थानीय क्षेत्र विकास कोष‘‘ का श्रीनगर के लोगो के सुझावों से श्रीनगर के विकास के लिये खर्च किया जाये।
3) शहर को पानी व्यवस्था सुचारू रूप में हो और साफ़ पानी मिले इसके लिए श्रीनगर जलविद्युत परियोजना की डी.एस.बी टनल में जहाँ से पानी जाता है वहीं से शहर को भी पानी दिया जाये।

परिचर्चा में श्रीनगर के अन्य सभासद अनूप बहुगुणा, सुधांशु नौडियाल के साथ शहर के तमाम बुद्धिजीवी लोग व जून 2013 के आपदा प्रभावित तथा दशोली ब्लाक के बाटुला गांव के उपप्रधान मदनसिंह, गडोरा गांव के प्रधान विनोदलाल व दुर्गापुर गांव के देवेन्द्रलाल आदि भी सम्मलित हुये।

प्रेमवल्लभ काला                                                                                  किशोरी बहुगुणा

Press Note:26-8-15


सर्वाेच्च न्यायालय में तारिख फिर आगे बढ़ी

पर्यावरण मंत्रालय ने 19 महिनों से जवाब दाखिल नही किया


{English translation after Hindi}
उत्तराखंड में गंगा पर बने टिहरी बांध पर एन. डी. जुयाल व शेखर सिंह बनाम भारत सरकार वाले केस में 10 फरवरी 2014 के आदेश में पर्यावरण, वन एंव जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को अपना शपथ पत्र दाखिल करना था कि उसे उत्तराखंड के जंगल भूमि को विस्थापितों को देने पर उसकी कोई आपत्ति है या नही? 15 जुलाई 2014 को अदालत ने नाराज होकर कहा भी कि मंत्रालय ने 4 हफ्ते का समय मांगा था किन्तु 4 महिने बाद भी कोई सूचना अपने वकील तक को नही दी। सर्वोच्च अदालत में इसके बाद से 16 बार तारिख आगे बढ़ चुकि है। पर्यावरण, वन एंव जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 19 महीने बाद भी कोई जवाब नही दिया है। अब अगली तारिख 8 सितम्बर है।

टिहरी बांध के खिलाफ एन. डी. जुयाल व शेखर सिंह बनाम भारत सरकार वाले केस में माननीय सर्वाेच्च न्यायालय के आदेश को 13 साल और टिहरी बांध के कमीशन होने के 10 साल बाद भी टिहरी बांध विस्थापितांे का पुनर्वास पूरा नही हो पाया है। बंाध संचालित होने के बाद पाया गया कि सर्वे गलत थे। नये सर्वे में हजार से ज्यादा नये विस्थापित मालूम पड़े। बांध की झील के किनारे के लगभग 40 गांव धसक रहे है।
उत्तराखंड राज्य सरकार जो कि पुनर्वास का काम कर रही है, उसका कहना है कि टी.एच.डी.सी. पुनर्वास के लिये पैसा मुहैया नही कर रहा है। ऊर्जा मंत्रालय के कार्यालय ज्ञापन 09 दिसम्बर, 1998 व 2 जनवरी 2001 के अनुसार पुनर्वास का संपूर्ण काम प्रदेश के सरकार और इसके ऑफिसर के द्वारा गढ़वाल डिवीज़न के कमिश्नर के नियंत्रण और देख रेख में किया जाना चाहिए, जिसके लिए निधि टी.एच.डी.सी. द्वारा उपलब्ध करायी जानी थी। किन्तु बांध संचालित होने के बाद टी.एच.डी.सी. के रुख में पूरी तरह बदलाव आ गया। टी.एच.डी.सी. विभिन्न तरह के बहुत छोटे पुनर्वास कार्याे हेतु जैसेः- टिहरी बांध जलाशय में जलभराव परिक्षेत्र में साम्पार्श्विक क्षति से प्रभावित परिवारों के विस्थापन एंव पुर्नस्थापन हेतु धन उपलब्ध करने के सम्बन्ध में, टिन शेडों के निर्माण हेतु, परियोजना एवं शिकायत निवारण प्रकोष्ठ हेतु वर्ष 2014-15 के धनाबंटन के सम्बन्ध में, पुनर्वास हेतु अधिग्रहण/क्रय की गयी रानीपुर रोह, शिवालिकनगर तथा पथरीरोह (सुमननगर) की भूमि का मूल्य भुगतान किये जाने के सम्बन्ध में धन की मांग पूरी नहीं की हैं।

स्थिति तो यह है कि टिहरी बांध परियोजना के अधिष्ठान एवं शिकायत निवारण प्रकोष्ट हेतु, संयुक्त विशेषज्ञ समिति के समस्त सदस्यों का मानदेय दिए जाने हेतु भी धन उपलब्ध नहीं कराया गया है। यहाँ तक की शिकायत निवारण प्रकोष्ठ के नियमित क्रियान्वन के लिए भी तय निधि नहीं आ रही है। इसके सम्बन्ध में पुनर्वास निदेशालय टी.एच.डी.सी. से पैसा मांगता है तो टी.एच.डी.सी. कभी कागजों मे कमी, कभी प्रक्रिया की कमी, कभी केंद्र सरकार के उर्जा मंत्रालय से स्वीकृति की कमी आदि का कारण देकर धन की मांग पूरी नही करती। जबकि ये मांगे बहुत पहले ही पूरी हो जानी चाहिए जो आज तक भी कागजों पर ही चल रहा है।

29 जुलाई 2015 को टिहरी बाँध को संचालित हुए भी 10 साल हो गए है। किंतु अभी भी खासकर ग्रामीण पुनर्वास स्थल में न्यूनतम सुविधायें पूरी नहीं हो पायी है। कई पुनर्वास स्थलों से तो विस्थापित इन समस्याओं के कारण जमीन बेचकर कहीं और बसने पर मजबूर हो रहे है।

जबकि एन. डी. जुयाल व शेखर सिंह बनाम भारत सरकार वाले टिहरी बांध के केस में विस्थापितों का पुनर्वास माननीय सर्वाेच्च न्यायालय के 01 सितम्बर 2013 के आदेश के अनुसार--
‘‘यह स्पष्ट किया गया है कि परियोजना के चालू होने के पूर्व शर्तो को साथ-साथ अमल करने करने की शर्त को वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के मौजूदा प्रक्रियाओं के तहत बहुत बारीकी से निगरानी किया जाएगा एवं परियोजनाकार यह सुनिश्चित करेंगे कि जलाशय को भरने के लिए, टी-1/टी-2 सुरंग बन्द करने के पूर्व हरेक तरीके से विस्थापन, पुनर्स्थापन एवं पुनर्वास हो जाए। .................................इन शर्तों के पूरा होने के बाद ही डूब लायी जाएगी। प्रत्यार्थी द्वारा दिये गये इस विशिष्ट कथन द्वारा याची को सुनिश्चित करना चाहिए कि टिहरी बाँध के बारे में 19 जुलाई 1990 के पर्यावरणीय मंजूरी के प्रमाण पत्र की समस्त शर्तों के पूरी तरह पालन होने तक किसी डूब की अनुमति नहीं दी जाएगी।‘‘

नमामि गंगा का जाप करने वाली सरकार गंगा पर बने बांधों को रोकने का तो कोई उपक्रम कर ही नही रही है। साथ ही कब अब तक बने बांधों जैसे टिहरी बांध के विस्थापितों के बारे में सही रुख लेगी?

विमलभाई व पूरणसिंह राणा

DATE EXTENDED 16th TIMES IN SUPREME COURT
MINISTRY OF ENVIRONMENT DID NOT REPLY SINCE 19 MONTHS
Ministry of Environment, Forest and Climate Change (MoEFCC) had to file an affidevit in the case on Tehri Dam filed by N.D. Juyal and Shekhar Singh, for the oustees of Tehri Dam regarding its objection to providing forest land to the affected people.
On the 15th July 2014 the Honb'le Supreme Court took record that the ministry asked for a time period of a month but even after 4 months the ministry did not provide any information to its lawyer. The hon'ble supreme court shifted the hearing date atleast 16 times but the MoEFCC has not responded till now even after 19 months. Next date for the hearing is now on 8th September, 2015.
After 13 years of the order of Hon'ble Supreme Court in the case of N.D. Jayal and Shekhar Singh Vs. Government of India and 10 years since the commission of Tehri Dam, the rehabilitation has not been completed.
The state government of Uttarakhand, which is responsible for the rehabilitation is saying that Tehri Hydro Devlopment Commission (THDC) is not releasing the funds for the rehabilitation and resettlement work. According to the Office Memorandum dated 09th December, 1998 and Office Memorandum dated 2nd January 2001, the complete rehabilitation work shall be done by State Govt. in the monitoring and control of Commissioner of Garhwal Division. For which THDC was made responsible for making funds available.

THDC has also not fulfilled the demand of providing funds for different rehabilitation works like, releasing funds for the resettlement and rehabilitation of affected families, funds for those affected by the collateral damage done due to Tehri dam reservoir in surrounding area; funds for construction of tin sheds, allotment of funds for the year 2014 - 15 to the Project and Grievance Redressal Cell, for payment of acquired or purchased land for rehabilitation in Ranipur Road, Shivaliknagar and Pathrirod (Suman Nagar).
The situation of rehabilitation has become worse as the funds have not been released even for the honorarium of the members of Joint Expert Committee and Grievances Redressal Cell of Tehri Dam Project. In this regard, THDC has justified its own failure through giving arbitrary excuses like lack of appropriate approvals, lack of adequate processes and lack of approvals from Ministry of Power. In reality, it should have been completed long back but the work is still stuck due to puzzles being played by the THDC in documents and paper work.
It has now been 10 years since the completion of Tehri dam and yet the basic amenities have not been provided for the rural rehabilitation. Many people have shifted from the rehabilitation site to other places because of numerous problems in terms of basic amenities.
According to the order dated 01st September, 2013 of Hon’ble Supreme Court in the case of N.D. Jayal and Shekhar Singh Vs. Government of India the rehabilitation of affected families of Tehri Dam will be as per the orders -
It is made clear that implementation of pari-passu conditions prior to the commission of the project shall be closely monitored under the existing mechanism set up by MoEF and the project authorities will ensure that prior to closing of diversion tunnels T1/T2 for impoundment of the reservoir, evacuation, resettlement and rehabilitation are completed in all respects.
----------------- It is only after the completion of these conditions impoundment would start. This categorical statement made by the respondents should assure the petitioners that no impoundment would be allowed until all the conditions in the Environmental Clearance Certificate of the Tehri Dam dated July 19, 1990 are compiled with and stand fulfilled.”
The government which claims to worship the Ganga and chants “Namami Ganga” has done nothing to stop the construction of dams on the same Ganga. Along with this when will the government take necessary action for rehabilitation of oustees of earlier Dams like Tehri Dam.

Vimalbhai and Puran Singh Rana